राख के टीले किस क्षेत्र की नवपाषाणिक संस्कृति से सम्बन्धित हैं?

(a) पूर्वी भारत
(b) दक्षिण भारत
(c) उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र
(d) कश्मीर घाटी

Ans: [b) दक्षिण भारत

व्याख्या: दक्षिण भारत में स्थिर ग्राम्य जीवन की आधार-रेखा नव पाषाणकालीन संस्कृति से प्राप्त होती है। खेती की फसलों में बाजरे और चने का अवशेष मिला है। मवेशियों, भेड़-बकरियों के विस्तृत अवशेष तथा अन्य पशुओं की अस्थियां मिली हैं, जिनसे अर्थव्यवस्था में पालतू पशुओं के महत्व का संकेत मिलता है। इस संस्कृति के लोग अपने मवेशियों को संभवतः प्रत्येक वर्ष की किसी कालावधि में अपने घरों के बाहर बाँध देते थे। जिस इलाके में मवेशी रखे जाते थे, उसमें लकड़ी के डंडों की बाड़ लगा दी जाती थी। बाड़ के भीतर जो गोबर एकत्र होता था उसे प्रतिवर्ष बाड़ के डंडों के साथ ही जला दिया जाता था। यह जलाने का कार्य संभवतः पोंगल समारोह के आस-पास किया जाता था, जो मकर-संक्रान्ति को पड़ता है। प्रतिवर्ष इस प्रक्रिया की लगातार पुनरावृत्ति का परिणाम यह हुआ कि जिस जगह वह होली जलाई जाती थी, वहाँ राख का एक टीला बन गया। दक्षिण भारतीय पुरातत्व में इन टीलों को भस्म टीला (Ash mounds) कहा जाता है। ऐसा ही राख का ढेर कर्नाटक के पिक्लीहल एवं संगनकल्लू से प्राप्त हुआ है।

Leave a Comment