मौलिक अधिकार से आप क्या समझते हैं

मौलिक अधिकारों की स्पष्ट एवं निश्चित अर्थ बताना कठिन है, क्योंकि देशकाल, परिस्थितियों में इसके अर्थ में बदलाव आया है। इंग्लैण्ड में मूल अधिकार वे अधिकार कहे जाते हैं, जो ‘बिल ऑफ राइट्स’ द्वारा जनता ने प्राप्त किए हैं। अमेरिका और फ्रांस में इन अधिकारों को नैसर्गिक और अप्रतिदेय अधिकारों के रूप में ही स्वीकार किया गया है। भारतीय संविधान में मूल अधिकारों की कोई परिभाषा नहीं दी गई है, किन्तु भारत में भी इन अधिकारों को नैसर्गिक और अप्रतिदेय अधिकार माना है। वस्तुतः मूल अधिकार

वह आधारभूत अधिकार है, जो नागरिकों के बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक ही नहीं, वरन् अपरिहार्य है। इन अधिकारों के अभाव में व्यक्ति का बहुमुखी विकास संभव नहीं है। दूसरी ओर यह अधिकार संविधान द्वारा संरक्षित होते हैं तथा राज्य के विरुद्ध गारंटी प्रदान करते हैं, ताकि वे निरंकुश न हो सके। दूसरे शब्दों में मूल अधिकार ऐसे संवैधानिक सिद्धान्त है, जो मानव को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है।

किसी भी व्यक्ति के चहुमुखी विकास अर्थात बौद्धिक, भौतिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक अधिकारों को मौलिक अधिकार कहा जाता है। मौलिक अधिकारों का तात्पर्य राजनीतिक लोकतंत्र के आदर्श की उन्नति से भी है। यह अधिकार देश में व्यवस्था बनाए रखने एवं राज्य के कठोर नियमों के खिलाफ नागरिकों की आजादी की रक्षा करते हैं। मूल रूप से भारतीय संविधान में 7 मौलिक अधिकार दिए गए हैं परंतु वर्तमान में छह मौलिक अधिकार हैं। संपत्ति के अधिकार को 44 वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकारों से हटाकर कानूनी अधिकार बना दिया गया।