लोकसभा अध्यक्ष के कार्य : लोकसभा अध्यक्ष के पद का हमारे संसदीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है. अगर संसद सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते है, तो लोकसभा अध्यक्ष सदन के पूर्ण प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है. यह सदन की गरिमा और शक्ति का प्रतीक है जिसकी वह लोकसभा अध्यक्षता करता है. उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे इसकी गरिमा बनाए रखें. दूरदर्शन पर संसद की कार्यवाही का प्रसारण होने से इसे लाखों-करोड़ों लोग देखते हैं, जिससे लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. यद्यपि लोकसभा अध्यक्ष सदन में कम ही बोलता है, लेकिन वह जब भी कुछ बोलता है, तो सम्पूर्ण सदन के लिए बोलता है. दरअसल लोकसभा अध्यक्ष संसदीय लोकतंत्र का वास्तविक संरक्षक माना जाता है, उसका नाम राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के तत्काल पश्चात् ही रखा गया है.
भारतीय लोकतंत्र में लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना गया है. लोक सभा लोकसभा अध्यक्ष के संदर्भ में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि “लोकसभा अध्यक्ष सदन की गरिमा तथा उसकी स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है सदन राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए लोकसभा अध्यक्ष एक प्रकार से राष्ट्र की स्वतंत्रता और स्वाधीनता का प्रतीक होता है. दरअसल लोकसभा अध्यक्ष सदन के प्रतिनिधियों का मुखिया तथा उनकी शक्तियों और विशेषाधिकारों का अभिभावक होता है, लेकिन इतिहास में ऐसे कई महत्वपूर्ण उदाहरण मौजूद है, जिनमें सदन के अध्यक्षों ने महत्वपूर्ण निर्णय लेकर राज्य की राजनीति को प्रभावित किया है.
लोकसभा लोकसभा अध्यक्ष पर राजनीतिक दल का एजेंट होने का आरोप
सदन का लोकसभा अध्यक्ष , सदन का प्रधान प्रवक्ता होता है, वह सदन में सामूहिक मत का प्रतिनिधित्व करता है. दसवीं अनुसूची के तहत सभी संसदीय मामलो में लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है, जिसे सामान्यतः न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है. इस प्रकार लोकसभा अध्यक्ष सदन में मध्यस्थ के रूप में भी कार्य करता है. हालाकि किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्लू मामले (1993) में सर्वोच्च न्यायालय का मत था कि दसवीं अनुसूची के तहत् सदस्यों की अयोग्यता के सम्बन्ध में सदन के लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है. लोकसभा अध्यक्ष सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने और उसे विनियमित करने के लिए सदन में व्यवस्था और शिष्टाचार बनाए रखने का कार्य भी करता है.
लोकसभा अध्यक्ष के कार्य एवं शक्तियां
लोकसभा अध्यक्ष को बहस के लिए अवधि आवंटित करने और सदन के सदस्यों को अनुशासित करने का अधिकार है. साथ ही, सदन का लोकसभा अध्यक्ष सदन के कामकाज से सम्बन्धित नियमों का अंतिम व्याख्याकार भी होता है. लोकसभा अध्यक्ष पद के साथ निहित तमाम अधिकारों और शक्तियों के कारण स्वतंत्रता और निष्पक्षता इस पद के लिए एक अनिवार्य शर्त हो जाती है, किन्तु इसके बावजूद समय-समय पर लोकसभा अध्यक्ष पद पर राजनीतिक दल का एजेंट होने का आरोप लगता रहा है. वर्ष 2006 के जगजीत सिंह बनाम हरियाणा राज्य वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निष्पक्षता के मामले में लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगाया था किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्लू मामले (1993) में सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कहा था कि सदन के लोकसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता पर संदेह से इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उसका चुनाव और कार्यकाल सदन के बहुमत पर निर्भर करता है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लोकसभा अध्यक्ष की नियुक्ति के तरीके और कार्यालय सम्बन्धी कुछ संरचनात्मक समस्याएं हैं जिनका तत्काल निवारण किए जाने की आवश्यकता है,
इसी तरह राज्यों में विधान सभा अध्यक्ष सदन की कार्यवाही और उसकी गतिविधियों के संचालन के लिए पूरी तरह जवाबदेह होता है. विधान सभा अध्यक्ष से यह अपेक्षा की जाती है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के साथ तालमेल बनाकर इस पद की गरिमा को बरकरार रखेगा. विधान सभा अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचित होना और उसका किसी भी दल के प्रति झुकाव नहीं होना, किसी भी लोकतंत्रीय व्यवस्था की प्रमुख आधारशिला होती है.सदन की व्यवस्था बनाए रखना उसकी जिम्मेदारी होती है और वह सदन में सदस्यों से नियमों का पालन सुनिश्चित कराता है. विधान सभा अध्यक्ष सदन के वाद-विवाद में भाग नहीं लेता, बल्कि विधान सभा की कार्यवाही के दौरान अपना निर्णय देता है. विधान सभा में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सदन का संचालन करता है, दोनों की अनुपस्थिति सभापति रोस्टर का कोई एक सदस्य यह जिम्मेदारी निभाता है.
संविधान में यह उपबंध किया गया है कि प्रत्येक विधान सभा का अपना एक पृथक सचिवालय होगा, जिसका प्रशासकीय नियंत्रण विधान सभा लोकसभा अध्यक्ष के पास होगा.
विधान सभा अध्यक्ष कार्य एवं शक्तियां
विधान सभा अध्यक्ष किसी भी राज्य में राजनीतिक उठापटक को देखते हुए वर्ष 1985 में पास किए गए दल बदल कानून का सहारा ले सकते हैं, इस कानून के तहत् सदन के लोकसभा अध्यक्ष निम्नलिखित स्थितियाँ उत्पन्न होने पर सदस्यता रद्द कर सकते हैं
- अगर कोई विधायक खुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है.
- अगर कोई निर्वाचित विधायक पार्टी लाइन के खिलाफ जाता है.
- अगर कोई विधायक पार्टी व्हिप के बावजूद मतदान नहीं करता है.
- अगर कोई विधायक विधान सभा में अपनी पार्टी के दिशा-निर्देशों का उल्लघन करता
- संविधान की दसवीं अनुसूची में निहित शक्तियों के तहत् विधान सभा लोकसभा अध्यक्ष फैसला ले सकता है.
हालांकि, मूलतः इस कानून के तहत् विधायकों की सदस्यता रद्द करने पर विधान सभा लोकसभा अध्यक्ष का फैसला आखिरी हआ करता था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया कि स्पीकर के फैसले की कानूनी समीक्षा हो सकती है,
लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर) के कार्य
आजादी के बाद भारतीय संविधान के निर्माताओं ने देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाने और शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए केंद्रीय स्तर पर जहाँ संसद की व्यवस्था की. वहीं राज्यों में विधान सभा के गठन का प्रस्ताव किया. इसके साथ ही लोक सभा के संचालन और गरिमा बनाए रखने के लिए लोक सभा लोकसभा अध्यक्ष और राज्यों में विधान सभा लोकसभा अध्यक्ष के पद का प्रावधान किया, लेकिन अब राजनीतिक वैमनस्यता के कारण अध्यक्षों पर सवालिया निशान लगते रहे. विधान सभा लोकसभा अध्यक्ष से यह अपेक्षित होता है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के साथ तालमेल बनाकर इस पद की गरिमा को बरकरार रखेगा. विधान सभा लोकसभा अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचित होना और उसका किसी भी दल के प्रति झुकाव नहीं होने वाला स्वरूप समाज की उस राजनीतिक जागरूकता का प्रतीक है, जो लोकतंत्रीय व्यवस्था की प्रमुख आधारशिला है, लेकिन दिन प्रति दिन इसमें गिरावट आती जा रही है.
विधान सभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए एक लोकसभा अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का प्रावधान संविधान में है. विधान सभा का गठन होने के बाद उसके प्रथम सत्र में ही विधान सभा सदस्यों द्वारा विधान सभा लोकसभा अध्यक्ष चुना जाता है. लोकसभा अध्यक्ष के अलावा विधान सभा के सदस्य उपाध्यक्ष का चुनाव भी करते हैं, जो लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसका कार्यभार संभालता है,
विधान सभा लोकसभा अध्यक्ष के प्रमुख कार्यों में वे ही सब कार्य आते हैं, जो लोक सभा लोकसभा अध्यक्ष करता है, जैसे.
- सदन में अनुशासन बनाए रखना.
- सदन की कार्यवाही का सुचारू रूप से संचालन करना.
- सदस्यों को बोलने की अनुमति प्रदान करना. पक्ष और विपक्ष में समान मत आने पर निर्णायक मत प्रदान करना.
इस प्रकार स्पीकर एक संवैधानिक पद होते हुए लोकतंत्र का सजग प्रहरी है, जो प्रत्येक स्थिति में लोकतंत्र की रक्षा करता है
- हड़प्पा संस्कृति के किस स्थल से कब्रिस्तान के प्रमाण नहीं मिले हैं
- मोहनजोदड़ो की प्रसिद्ध पशुपति मुहर पर देवता किन पशुओं से घिरा है
- हड़प्पा संस्कृति से जुड़ा पुरास्थल सुत्कागेनडोर किस नदी के तट पर स्थित है
- किन हड़प्पाई स्थलों पर घोड़े के अवशेष प्राप्त हुए हैं
- निम्नलिखित में से किन हड़प्पाई स्थलों पर घोड़े के अवशेष प्राप्त हुए हैं
- भारत का सबसे बड़ा हड़प्पन पुरास्थल है
- सुत्कागेनडोर किस नदी के तट पर स्थित है
- हड़प्पा संस्कृति के लोग लाजवर्द किस देश से प्राप्त करते थे
- हड़प्पा संस्कृति में किस प्रकार की मुहरें सर्वाधिक लोकप्रिय थीं
- निम्नलिखित में से किसकी पूजा हड़प्पा संस्कृति में नहीं होती थी