जैनियों द्वारा अपने पवित्र ग्रन्थों के लिए सामूहिक रूप से किस शब्द का प्रयोग किया जाता है?

[1] प्रबंध
[2] अंग
[3] निबन्ध
[4] चरित

उत्तर: (2] अंग

व्याख्या: जैन धर्म की पवित्र पुस्तकों को सामूहिक रूप से ‘अंग’ कहा जाता है। इसमें विभिन्न छोटे-छोटे मुद्दों पर पचास पृथक् कृतियों को समाविष्ट किया गया है। ये मूल-पाठ मुख्यत: अर्ध-मागधी प्राकृत और शौरसेनी भाषा में लिखे गए हैं। इस प्रामाणिक धर्म ग्रंथ संग्रह में विभिन्न नियमों की अन्य पुस्तकों के अतिरिक्त, महावीर द्वारा उल्लेखित 14 ‘पूर्व’ या ‘आरंभिक कृतियों’ और महावीर के शिष्यों द्वारा रचित कई अंग भागों को शामिल किया गया है।

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