उत्तर भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) भारत में सोने और चांदी की हॉलमार्किग योजना को संचालित करता है, हॉलमार्किंग को ‘मूल्यवान धातु की वस्तुओं में मूल्यवान धातु की आनुपातिक सामग्री का सटीक निर्धारण और आधिकारिक रिकॉर्डिंग’ के रूप में परिभाषित करता है। यह मूल्यवान धातु की वस्तुओं की शुद्धता या सुंदरता की गारंटी है, जो वर्ष 2000 में प्रारम्भ हुई थी। भारत में वर्तमान में दो मूल्यवान धातुओं सोना और चांदी को हॉलमार्किंग के दायरे में लाया गया है। BIS प्रमाणित ज्वैलर्स किसी भी BIS मान्यता प्राप्त ‘एसेइंग एंड हॉलमार्किंग सेंटर’ (Assaying and Hallmarking Centres-A & HC) से अपने आभूषण हॉलमार्क करवा सकते हैं। पहले यह ज्वैलर्स के लिये वैकल्पिक था और इस प्रकार केवल 40 प्रतिशत सोने के आभूषण की हॉलमार्किंग हो रही थी।
गोल्ड हॉलमार्किंग की आवश्यकता
भारत सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। हालांकि देश में हॉलमार्क वाली ज्वैलरी का स्तर बहुत कम है। अनिवार्य हॉलमार्किग जनता को कम कैरेट (शुद्ध सोने का अंश) से बचाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि सोने के गहने खरीदते समय उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी न हो। यह आभूषणों पर अंकित शुद्धता को बनाए रखने में सहायता करेगा। यह पारदर्शिता लाएगा और उपभोक्ताओं को गुणवत्ता का आश्वासन देगा। • यह आभूषणों के निर्माण की प्रणाली में विसंगतियों और भ्रष्टाचार को दूर करेगा।
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