[1] हीनयान संप्रदाय
[2] महायान संप्रदाय
[3] वैष्णव संप्रदाय
[4] शैव संप्रदाय
उत्तर: (2] महायान संप्रदाय
व्याख्या: कुषाणकाल में गांधार क्षेत्र में कला की एक विशिष्ट शैली का विकास हुआ जो गांधार कला के रूप में विख्यात् हुई। इस कला के मुख्य केन्द्र थे तक्षशिला, पुष्पकलावती, नगरहार, स्वातघाटी, कापिशा, बामियान तथा बाहलीक या बैक्ट्रिया। इस कला में पहली बार बुद्ध की सुंदर मूर्तियाँ बनाई गईं। इसके पूर्व बौद्ध चिह्न ही बनाए जाते थे। मूतियाँ काले स्लेटी पाषाण, चूने तथा पक्की मिट्टी से बनी हैं। गांधार कला को महायान संप्रदाय के विकास से प्रोत्साहन मिला। गांधार कला की विषयवस्तु तो भारतीय थी परंतु कला शैली यूनानी-रोमन थी। इसीलिए गांधार कला को ग्रीको-रोमन, ग्रीको-बुद्धिस्ट तथा हिंद-यूनानी कला भी कहा जाता था।
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