मौलिक अधिकार की विशेषता

मूल अधिकार व्यक्ति के अधिकार होते हैं जो स्वयं संविधान के द्वारा दिए जाते हैं। भारतीय संविधान में जिन मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। उनके यहां पर मौलिक अधिकार की विशेषता  का वर्णन किया जाएगा।

 विस्तृत विवेचना

भारतीय संविधान के तीसरे भाग में वर्णित मूल अधिकारों की पहली विशेषता यह है कि इनका अत्यंत विस्तार से वर्णन किया गया है। संसार के किसी भी संविधान में इनका इतना विस्तृत व जटिल विवेचन नहीं मिलता है। इनके विस्तृत होने का कारण यह भी है कि इसमें न केवल छह मौलिक अधिकारों का विस्तार से वर्णन किया गया है बल्कि  उनकी मर्यादा के लिए उन पर आरोपित  सीमाओं का वर्णन भी किया गया है।

नकारात्मक और सकारात्मक अधिकार

भारतीय संविधान में दिए गए मूल अधिकारों के दो रूप हैं नकारात्मक और सकारात्मक पूर्णविराम नकारात्मक अधिकारों में वे अधिकार आते हैं जो  निषेधात्मक है। वे राज्यों की शक्ति पर  मर्यादा लगाते हैं, किसी नागरिक को कोई अधिकार नहीं देते। जैसे अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता से अथवा विधि के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 18 में सेना तथा विद्या संबंधित उपाधियों के लिए अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार की उपाधि राज द्वारा प्रदान किए जाने पर निषेध करता है। यह अधिकारों का नकारात्मक रूप है।

मूल अधिकारों का दूसरा रूप सकारात्मक है जिसके अंतर्गत व्यक्ति को विशिष्ट अधिकार प्राप्त हैं। स्वतंत्रता का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता व शिक्षा और संस्कृति के अधिकारों को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। इन दोनों रूपों का एक प्रमुख अंतर यह है कि नकारात्मक अधिकार सीमित है जबकि सकारात्मक अधिकार सीमित एवं मर्यादित हैं।

राज्य के विभिन्न निकायों पर प्रतिबंध

अनुच्छेद 13 में उप बंधित है कि राज ऐसा कोई कानून नहीं बनाएगा। जो भाग 3 में दिए गए अधिकारों को चिंता हो या न्यून करता हो तथा इस खंड के उल्लंघन में बनाए गए प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी अर्थात अवैध मानी जाएगी। इसके साथ ही अनुच्छेद बारे में राज्य शब्द की व्याख्या की गई है और कहा गया है। कि राज्य के अंतर्गत भारत सरकार तथा संसद प्रत्येक राज्य की सरकार व्यवधान मंडल तथा सभी स्थानीय व अन्य अधिकारी सम्मिलित हैं। इस प्रकार भारत की केंद्रीय सरकार संसद राज्य सरकार विधान मंडल जिला बोर्ड नगरपालिका ग्राम पंचायत व अन्य कोई अधिकारी मूल अधिकारों को छीनने गाया न्यून करने वाली विधि आदेश नियम या अनु सूचना आदि का निर्माण नहीं कर सकता।

 अधिकार निरंकुश नहीं है

अमेरिका के संविधान में मूल अधिकारों पर प्रत्यक्ष रूप से कोई सीमा या मर्यादा नहीं है। किंतु वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस शक्ति के अंतर्गत राज्य को सामान्य हित के लिए अधिकारों पर मर्यादा लगाने के सिद्धांत को स्वीकृति दी गई है। इसके विपरीत भारतीय संविधान में प्रदत्त मूल अधिकारों पर सीमाओं का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। साथ ही संसद को इन अधिकारों पर उचित से सीमाएं लगाने का अधिकार भी दिया गया है।

मौलिक अधिकारों की विशेषता नागरिक व विदेशों में अंतर

मूल अधिकारों का उपयोग करने से संबंध में नागरिकों व विदेशियों में अंतर किया गया है। कुछ अधिकार केवल नागरिकों को दिए गए हैं जब भी कुछ अधिकार नागरिकों के साथ-साथ विदेशियों को भी प्राप्त हैं। जैसे विधि के सम्मुख समानता व धार्मिक स्वतंत्रता आदि के अधिकार नागरिक विदेशियों दोनों को दिए गए हैं जबकि भाषण में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभा करने का अधिकार केवल नागरिकों को प्राप्त विदेशियों को नहीं संविधान में नागरिक वह व्यक्ति शब्दों का समुचित प्रयोग किया गया है जो उपयुक्त भेद को स्पष्ट करते हैं। इस प्रकार का भेद नहीं किया गया है वहां अधिकार नागरिक व विदेशी दोनों को प्राप्त है

 संवैधानिक व्यवस्था

 मूल अधिकारों को लागू करने की व्यवस्था भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत की गई है। भारतीय नागरिकों के अधिकार प्राप्त है कि वे मूल अधिकारों के संरक्षण के लिए सर्वोच्च न्यायालय में शरण ले सकते हैं

किसी नागरिक द्वारा अधिकारों के संरक्षण की मांग पर न्यायालय समुचित आदेश या लेख जारी कर सकता है। आदेश या लेख जारी करने का अधिकार उच्च न्यायालय को भी प्राप्त है अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय में भी मूल अधिकारों के संरक्षण के लिए कोई भी व्यक्ति जा सकता है

 प्राकृतिक अधिकारों को स्वीकृति नहीं

 अमेरिका के संविधान में यह उप बंधित किया गया है कि संविधान में दिए गए मूल अधिकारों के अतिरिक्त अन्य अधिकारों का उपयोग भी वहां के नागरिक कर सकते हैं। कुछ मूल अधिकारों को लेकर दिए  जाने का यह अर्थ नहीं है कि नागरिक अन्य प्राकृतिक अधिकारों के उपयोग से वंचित है । इसके ठीक विपरीत भारतीय संविधान अपने नागरिकों को केवल संविधान में उतना अधिकारों के उपयोग की आज्ञा प्रदान करता है अर्थात यहां प्राकृतिक अधिकारों को मान्यता प्राप्त नहीं है। इस प्रकार भारतीय संविधान में मूल अधिकारों की संख्या तथा न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को इस दृष्टि से सीमित कर दिया गया है क्योंकि न्यायालय 6 मूल अधिकारों के अतिरिक्त किसी अन्य अधिकार के संरक्षण की शक्ति नहीं रखते जबकि अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति असीमित है।

 संसद को संशोधन करने का एकाधिकार

 संघात्मक संविधान में संशोधन करने के लिए केंद्र व राज्यों की सहमति आवश्यक होती है।भारतीय संविधान में भी इस सिद्धांत को अपनाया गया है किंतु यहां बहुत से अन्य अनुच्छेदों के साथ ही मूल अधिकारों के संशोधन में राज्य की कोई भूमिका नहीं है।

गैर नागरिकों को निम्नलिखित मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।
अनुच्छेद 14- विधि के समक्ष समानता;
अनुच्छेद 20- अपराधियों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण;
अनुच्छेद 21- प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता;
अनुच्छेद 23- मानव के दैहिक व्यापार व बलात श्रम का प्रतिषेध;
अनुच्छेद 25- अंतःकरण और धर्म के अवैध रूप से मानने आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता;
अनुच्छेद 26- धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता;
अनुच्छेद 27- किसी विशिष्ट धर्म की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता;
अनुच्छेद 28- कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थिति होने के बारे में स्वतंत्रता

भारत के महालेखा परीक्षक का कर्तव्य क्या है?

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्तव्यों के विषय में इस अधिनियम के उपबंध इस प्रकार हैं

  • भारत और प्रत्येक राज्य तथा प्रत्येक संघ राज्यक्षेत्र की संचित निधि से सभी व्यय की संपरीक्षा और उन पर यह प्रतिवेदन कि क्या ऐसा कोई व्यय विधि के अनुसार है।
  • इसी प्रकार संघ और राज्यों की आकस्मिकता निधि और लोक लेखाओं से सभी व्यय की संपरीक्षा और उन पर प्रतिवेदन।
  • संघ या राज्य के विभाग द्वारा किए गए सभी व्यापार और विनिर्माण के हानि और लाभ-हानि लेखाओं की संपरीक्षा और उन पर प्रतिवेदन।
  • संघ और प्रत्येक राज्य की आय और व्यय की संपरीक्षा जिससे उसका यह समाधान हो जाए कि राजस्व के निर्धारण, संग्रहण और उचित आवंटन के लिए पर्याप्त जाँच करने के लिए इस निमित्त नियम और प्रक्रियाएँ बनाई गई हैं।
  • संघ और राज्य के राजस्वों से पर्याप्त रूप से वित्त-पोषित सभी निकायों और प्राधिकारियों की,
  • सरकारी कंपनियों की,
  • अन्य निगमों या निकायों की जब ऐसे निगमों या निकायों से संबंधित विधि द्वारा इस प्रकार अपेक्षित हो, प्राप्ति और व्यय की संपरीक्षा और उस पर प्रतिवेदन।

राज्यपाल का पद किस देश से लिया गया है?

(A) स्विटजरलैण्ड से
(B) कनाडा से
(C) आयरलेण्ड से
(D) संयुक्त राज्य अमेरिका से

Ans: (B) कनाडा से

व्याख्या: राज्यपाल का पद कनाडा देश से लिया गया है। संविधान के छोटे वाक्य अनुच्छेद 153 से 167 तक राज्य का विभाजन का के बारे में बताया गया है. राज्य की कार्यपालिका में राज्यपाल मुख्यमंत्री मंत्री परिषद पर राज्य के महाधिवक्ता शामिल होते हैं। इस प्रकार राज्य में उपराज्यपाल का कोई कार्यालय नहीं होता जैसे कि केंद्र में उपराष्ट्रपति का।

राज्यपाल किसी भी राज्य का कार्यकारी प्रमुख अर्थात संवैधानिक मुखिया होता. राज्यपाल, केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्यकर्ता है इस तरह राज्यपाल कार्यालय दोहरी भूमिका निभाता है. सामान्य रूप से प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होता है लेकिन सातवें संविधान संशोधन अधिनियम के अनुसार एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों के राज्यपाल भी नियुक्त किया जा सकता है.

राज्य के राज्यपालों की केंद्र द्वारा नियुक्ति के प्रावधान को कनाडा से लिया गया है. कनाडा के संविधान से सशक्त केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था, अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र में निहित होना, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति और उच्चतम न्यायालय का परामर्शी न्याय निर्णय आदि को कनाडा के संविधान से लिया गया.

राज्य के राज्यपालों की केन्द्र द्वारा नियुक्ति के प्रावधान को लिया गया है?

(A) स्विटजरलैण्ड से
(B) आयरलेण्ड से
(C) कनाडा से
(D) संयुक्त राज्य अमेरिका से

Ans: (C) कनाडा से

राज्य के राज्यपालों की केंद्र द्वारा नियुक्ति के प्रावधान को कनाडा से लिया गया है कनाडा के संविधान से सशक्त केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था, अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र में निहित होना, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति और उच्चतम न्यायालय का परामर्शी न्याय निर्णय आदि को करण के संविधान से लिया गया.

भारतीय संविधान का निम्नलिखित में से कौनसा अनुच्छेद ‘कुछ मामलों में गिरफ्तारी और निरुद्ध के खिलाफ सुरक्षा ‘ प्रदान करता है?

(A) 22
(B) 20
(C) 21
(D) 19

Ans: अनुच्छेद 22

व्याख्या– अनुच्छेद 22 में ‘कुछ मामलों में गिरफ्तारी और निरुद्ध के खिलाफ सुरक्षा ‘ प्रदान करता है , विशेष रूप से गिरफ्तारी के आधार सूचित किए जाने, अपनी पसंद के एक वकील से सलाह करने, गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर एक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने और मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना उस अवधि से अधिक हिरासत में न रखे जाने का अधिकार।

संविधान से क्या आशय है ?

संविधान से आशय है कि संविधान एक दस्तावेज है जो देश की संप्रभुता की स्वतंत्रता को दर्शाता है या उसका प्रतीक है। संविधान एक विशेष दस्तावेज है जो सरकार के प्रमुख अंगों अर्थात् विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका और उनके बीच संबंधों की भूमिका और कार्यों को निर्धारित करता है।
संविधान विश्वासों और कानूनों की एक प्रणाली है जिसके द्वारा एक देश/राज्य शासित होता है। ‘यह विशेष कानूनी पवित्रता वाला एक दस्तावेज है जो राज्य की सरकार के अंगों के ढांचे और प्रमुख कार्यों को निर्धारित करता है और उन अंगों के संचालन को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों की घोषणा करता है’।
संविधान को सरकार के लिए एक ढांचा प्रदान करने वाले कानूनी नियमों के संग्रह के रूप में परिभाषित किया गया है। यह प्रमुख विश्वासों और हितों को दर्शाता है या परस्पर विरोधी विश्वासों और हितों के बीच कुछ समझौता करता है, जो समाज की विशेषताएं हैं। यह लोगों की आस्था और आकांक्षाओं का दस्तावेज है।
संविधान अपनी शक्ति और अधिकार सीधे लोगों से प्राप्त करता है। संविधान उस देश का मौलिक और सर्वोच्च कानून है जिसे कानूनी मान्यता प्राप्त है। इसलिए, यह संसद द्वारा बनाए गए सभी कानूनों से ऊपर है।