भारतीय संविधान की आधारभूत सिद्धांत की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?

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भारतीय संविधान की आधारभूत सिद्धांत की अवधारणा: संविधान के आधारभूत ढांचे की अवधारणा का आशय है कि कुछ संवैधानिक व्यवस्थाएं संविधान का मूल स्वरूप या भावना निर्मित करते हैं।केशवानंद भारती वाद (24 अप्रैल 1973) में सर्वोच्च न्यायालय ने आधारभूत ढांचे के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।
संविधान की सर्वोच्चता, लोकतंत्रात्मक संसदीय प्रणाली, शक्तियों का पृथक्करण, संघात्मक शासन व्यवस्था,विधि का शासन, पंथनिरपेक्षता, राष्ट्र की एकता एवं अखंडता ,निष्पक्ष चुनाव प्रणाली, व्यक्ति की स्वतंत्रता ,मौलिक अधिकार , न्यायिक स्वतंत्रता आदि विषय आधारभूत ढांचे में सम्मिलित है । मिनर्वा मिल्स वाद (1980) तथा एस.आर .बोम्मई वाद (1994) में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान के आधारभूत ढांचे का निर्धारण किसी वाद में किसी तत्व को तथ्यों के आधार पर किया जाएगा। अतः आधारभूत ढांचे के सिद्धांत द्वारा संविधान के निरंतर और असीमित संशोधन (अनुच्छेद 368) पर एक स्वाभाविक प्रतिबंध आरोपित होता है। जो न्यायिक पुनरावलोकन का ठोस आधार निर्मित करता है ।

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