संविधान की प्रस्तावना में अब तक 1 बार संशोधन हुआ है. 42 वें संविधान संशोधन के द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है. केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य के वाद में यह प्रश्न सर्वप्रथम न्यायालय के समक्ष विचार के लिए उपस्थित हुआ था कि क्या अनुच्छेद 368 के तहत प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है अथवा नहीं? इस संदर्भ में सरकार का यह तर्क था कि चूंकि प्रस्तावना संविधान का एक अंग है,
अतएव अनुच्छेद 368 के अंतर्गत उसमें संशोधन किया जा सकता है। अपीलार्थी की ओर से यह कहा गया कि अनुच्छेद 368 द्वारा प्रदत्त संशोधन की शक्ति सीमित है। प्रस्तावना में संविधान का आधारभूत ढांचा निहित है, जिसे संशोधन करके नष्ट नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इससे संवैधानिक ढाँचे का चरमरा जाना निश्चित है। उच्चतम न्यायालय ने बहुमत से इस मामले में यह निर्धारित किया है कि प्रस्तावना संविधान का भाग है, अतः इसमें संशोधन किया जा सकता है। किन्तु न्यायालय ने इसके साथ यह भी निर्धारित किया है कि प्रस्तावना के उस भाग में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता है जो आधारभूत ढाँचे से सम्बन्धित है। संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के पश्चात् यह स्पष्ट हो चुका है कि संसद को प्रस्तावना में संशोधन की शक्ति प्राप्त है, किन्तु जब तक केशवानंद भारती का निर्णय उलट नहीं दिया जाता, प्रस्तावना में किए गए संशोधन को कभी भी न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है कि वह उसमें निहित आधारभूत ढाँचे में परिवर्तन है।
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