बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांतों की विवेचना कीजिए?

उत्तर बौद्ध धर्म ने भारतीय चिंतन एवं नैतिक जीवन को अत्यधिक उन्नत किया ।बौद्ध धर्म की ‘संघ प्रणाली’ ने सामूहिक निवास की परंपरा द्वारा ‘सामाजिक समागम’ की प्रणाली का विकास किया। बौद्ध भिक्षुओं की निस्वार्थ धर्म प्रसार की भावना तथा जन कष्ट निवारण के उपायों ने भारतीय समाज में निस्वार्थ भाव और नैतिक धर्म का प्रारंभ किया। बौद्ध धर्म ने भारतीय दर्शन में ‘तर्कवाद’ का प्रसार करते हुए चिंतन की स्वतंत्रता पर बल दिया। बौद्ध धर्म के शून्यवाद व विज्ञानवाद का प्रभाव ना केवल कुमारिल भट्ट व शंकराचार्य (प्रच्छन्न बौद्ध) पर ही पड़ा बल्कि इसने वैश्विक चिन्तन को भी प्रभावित किया।

बौद्ध धर्म ने अपने अहिंसा और प्राणियों के प्रति दया भाव से ना केवल सामान्य जन को ही प्रभावित किया वरन बड़े-बड़े शासकों ने इस भाव से प्रभावित होकर अपने संपूर्ण जीवन को ही परिवर्तित कर लिया(अशोक की धम्म नीति)। बौद्ध दर्शन ने नैतिक जीवन एवं सदाचार को उच्चता प्रदान की तथा परोपकार, त्याग सत्चरित्रता और अहिंसा, सहनशीलता, सह अस्तित्व आदि गुणों का जन प्रचार कर, जनमानस में इसकी मान्यता स्थापित की।

बौद्ध धर्म ने आडंबर हीन एवं सरल व सुबोध सिद्धांत वाला धर्म दिया। जिसमें कर्मकाण्डों, मूर्तिपूजा, बलि प्रथा, वर्णाश्रम व्यवस्था आदि का अभाव था। सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु जाति प्रथा के कठोर बंधनो का निषेध कर जन्म के स्थान पर ‘कर्म की मान्यता’ स्थापित की और मानव को कर्तव्य का महत्व दर्शाया।

बौद्ध धर्म ने मोक्ष प्राप्ति के लिए भारतीय दर्शन एवं चिंतन को ‘मध्यम मार्ग ‘दिया जो बाद में विश्व का लोकप्रिय चिंतन बन गया। विभिन्न राष्ट्रों में बौद्ध धर्म का प्रसार होने से । भारत का ऐतिहासिक काल से इन राष्ट्रों से मधुर संबंध तो थे ही साथ ही वर्तमान समय में भी ‘द्विपक्षीय संबंधों’ को सुधारने में ऐतिहासिक संबंधों का उल्लेख किया जाता है।